उत्तर प्रदेश 2030 तक केंद्र सरकार के ₹9 लाख करोड़ के कपड़ा निर्यात लक्ष्य में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है। राज्य की समृद्ध कपड़ा विरासत और कुशल कार्यबल इसे देश के प्रमुख वस्त्र निर्यात केंद्रों में शामिल कर रहे हैं। कानपुर, जिसे कभी “पूर्व का मैनचेस्टर” कहा जाता था, आज भी एक प्रमुख कपड़ा केंद्र है। वाराणसी और मुबारकपुर अपनी रेशमी साड़ियों के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं, जबकि भदोही और मिर्जापुर कालीन उद्योग में अपनी अलग पहचान रखते हैं। लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई और गौतम बुद्ध नगर का उभरता रेडीमेड परिधान उद्योग भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
राज्य सरकार ने कपड़ा निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। ओडीओपी योजना के तहत पारंपरिक वस्त्र शिल्प को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे कारीगरों को नया बाजार मिल रहा है। गोरखपुर और अन्य जिलों में फ्लैटेड फैक्ट्री यूनिट स्थापित की गई हैं, जबकि लखनऊ-हरदोई सीमा पर पीएम मित्र योजना के तहत 1,000 एकड़ में मेगा टेक्सटाइल पार्क विकसित किया जा रहा है। गौतम बुद्ध नगर के सेक्टर 29 में 118 एकड़ में अपैरल पार्क और गोरखपुर में 80 फ्लैटेड फैक्ट्री यूनिट और एक गारमेंट पार्क बनाए जा रहे हैं।
जेवर एयरपोर्ट के 50 किलोमीटर के दायरे में और यूपीडा द्वारा विकसित एक्सप्रेसवे के किनारे कम से कम पांच अपैरल और गारमेंटिंग पार्क स्थापित करने की योजना है। पूर्वांचल को रेडीमेड गारमेंट सेक्टर के हब के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां गोरखपुर में टेराकोटा के बाद रेडीमेड गारमेंट को ओडीओपी योजना में शामिल किया गया है। आगरा में एक एकीकृत वस्त्र और परिधान औद्योगिक पार्क भी विकसित किया जा रहा है।
केंद्र सरकार भी इस क्षेत्र को समर्थन दे रही है। आम बजट में राष्ट्रीय कपास प्रौद्योगिकी मिशन के लिए ₹500 करोड़ आवंटित किए गए हैं। वर्तमान में भारत कपड़ा निर्यात के मामले में दुनिया में छठे स्थान पर है, लेकिन सरकार की योजनाओं और राज्य की औद्योगिक नीतियों को देखते हुए, उत्तर प्रदेश जल्द ही इस क्षेत्र में देश का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन सकता है। यह न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी प्रदान करेगा।
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