भूटान का भारत में विलय न होना इतिहास, कूटनीति और सांस्कृतिक पहचान का एक जटिल विषय है। जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, तब भूटान पहले से ही एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी संप्रभुता बनाए हुए था। ब्रिटिश भारत के समय 1910 की पुनाख संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने भूटान की विदेश नीति को नियंत्रित किया, लेकिन उसकी आंतरिक स्वायत्तता को बरकरार रखा।
भारत-भूटान संधि: स्वतंत्रता की मान्यता
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1949 में भारत और भूटान के बीच एक संधि हुई, जिसमें भारत ने भूटान की स्वतंत्रता को मान्यता दी। हालांकि, इस संधि के तहत भारत को भूटान की रक्षा और विदेश नीति में मार्गदर्शन देने का अधिकार मिला। इस संधि ने भूटान की संप्रभुता को बनाए रखा और दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों को प्रोत्साहित किया।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान
भूटान का भारत में विलय न होने का एक महत्वपूर्ण कारण उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान भी रही है। यह एक बौद्ध बहुल राष्ट्र है, जिसकी परंपराएँ तिब्बती बौद्ध धर्म और अपने विशिष्ट शाही शासन से प्रभावित रही हैं। इसके विपरीत, भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश है।
भूटान के शाही परिवार और वहां की जनता ने हमेशा अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी, जिससे यह कभी भी भारत में शामिल होने की दिशा में नहीं बढ़ा।
नेपाल और बलूचिस्तान का परिप्रेक्ष्य
नेपाल का भी एक स्वतंत्र इतिहास रहा है और यह कभी ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं रहा। 1950 में भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि के तहत दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित हुए, लेकिन नेपाल की राष्ट्रवादी भावना ने इसे भारत में शामिल होने से रोका।
बलूचिस्तान के तत्कालीन खान ने 1947 में भारत में विलय की इच्छा जताई थी, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों और विभाजन के तनाव के कारण भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया। बाद में पाकिस्तान ने 1948 में बलूचिस्तान पर सैन्य कार्रवाई कर उसे अपने अधिकार में ले लिया।
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भविष्य की संभावनाएँ
भविष्य में भूटान के भारत में शामिल होने की संभावना बेहद कम है। भूटान एक संवैधानिक राजशाही है और उसका संविधान भारत में विलय की अनुमति नहीं देता।
भारत और भूटान के बीच करीबी आर्थिक और कूटनीतिक संबंध हैं, लेकिन भारत इस संप्रभु राष्ट्र की स्वायत्तता का सम्मान करता है। चीन और भारत के बीच सामरिक प्रतिस्पर्धा के चलते भूटान की भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भारत के साथ एक स्वतंत्र मित्र राष्ट्र के रूप में बने रहना चाहता है।
निष्कर्ष
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक कारणों से भूटान का भारत में विलय निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता। हालांकि, दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध आगे भी जारी रहेंगे। भारत भूटान की स्वतंत्रता और संप्रभुता का सम्मान करते हुए उसके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखेगा।