केले की शेल्फ़-लाइफ बढ़ाने वाली क्रांतिकारी तकनीक
परिचय:
केला दुनिया में सबसे अधिक खाए जाने वाले फलों में से एक है, लेकिन इसकी तेज़ी से पकने और भूरे पड़ने की प्रवृत्ति इसे खाद्य अपशिष्ट का बड़ा हिस्सा बना देती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हर साल लगभग 50% केले बर्बाद हो जाते हैं।
ब्रिटेन स्थित बायोटेक कंपनी ट्रॉपिक ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए एक नया जीन-संपादित केला विकसित किया है, जिसका छिलका उतारने के बाद भी 12 घंटे तक इसका रंग नहीं बदलता और यह जल्दी खराब नहीं होता।
केले के जल्दी खराब होने का कारण
केले के पकने की प्रक्रिया में एथिलीन गैस उत्पन्न होती है, जिससे कई जीन सक्रिय हो जाते हैं। इनमें से एक जीन पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज (PPO) एंजाइम का उत्पादन करता है, जो केले के पीले रंग को भूरे रंग में बदलने के लिए जिम्मेदार होता है।
- चोट लगने या कटाई और परिवहन के दौरान झटके लगने से यह प्रक्रिया तेज़ हो जाती है।
- इसके परिणामस्वरूप केले जल्दी खराब हो जाते हैं, जिससे आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान होता है।
ट्रॉपिक कंपनी का समाधान
ट्रॉपिक कंपनी ने केले के जीन में सटीक बदलाव कर PPO एंजाइम का उत्पादन बंद कर दिया है। इससे केले का भूरा पड़ना रुक जाता है और इसका पोषण मूल्य और स्वाद बना रहता है।
- इसी तकनीक का उपयोग पहले अमेरिका में आर्कटिक सेब के उत्पादन में किया गया था, जो 2017 से बाजार में उपलब्ध हैं।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी तरह की तकनीक को टमाटर, खरबूजा, कीवी और मशरूम में भी लागू किया जा सकता है, जिससे अन्य खाद्य उत्पादों की बर्बादी भी कम होगी।
खाद्य अपशिष्ट और पर्यावरण पर प्रभाव
ब्रिटेन सरकार द्वारा 2017 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ब्रिटिश लोग हर दिन लगभग 1.4 मिलियन खाने योग्य केले फेंक देते हैं।
- खराब होने वाले केले मीथेन गैस का उत्पादन करते हैं, जो CO₂ से 25 गुना अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है और जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
ट्रॉपिक केले का पर्यावरणीय महत्व
ट्रॉपिक कंपनी के अनुसार, अगर इस नए केले को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है, तो यह CO₂ उत्सर्जन को इतनी मात्रा में कम कर सकता है, जो हर साल सड़कों से 2 मिलियन यात्री वाहनों को हटाने के बराबर होगा।
- यह तकनीक किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से फायदेमंद है।
- इससे फलों की शेल्फ़-लाइफ बढ़ेगी, आर्थिक नुकसान कम होगा और खाद्य अपशिष्ट घटेगा।
निष्कर्ष
अगर इस तकनीक को अन्य फलों और सब्जियों में भी अपनाया जाए, तो यह वैश्विक खाद्य प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इस तकनीक से पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक लाभ और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।