लखनऊ के गोमती नगर में स्थित जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (JPNIC) एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर की तर्ज पर एक आधुनिक सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र स्थापित करना था। इस परियोजना की नींव 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में रखी गई थी, और इसके लिए 865 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया था。

परियोजना में 18 मंजिला इमारत, 107 कमरों वाला लग्जरी होटल, कन्वेंशन हॉल, ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल, सात मंजिला पार्किंग, और जय प्रकाश नारायण पर आधारित एक संग्रहालय शामिल हैं। इसके अलावा, 17वीं मंजिल पर एक हेलीपैड भी बनाया गया है。

हालांकि, 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद, वर्तमान सरकार ने इस परियोजना में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए निर्माण कार्य रोक दिया और जांच शुरू की। पिछले 7 वर्षों से यह परियोजना ठप पड़ी है, और अब यह खंडहर में तब्दील होती जा रही है। इमारत में सुरक्षा के बावजूद चोरी की घटनाएं भी सामने आई हैं, जैसे कि 168 बाथरूम शॉवर और 126 सीपी एंगल वाल्व की चोरी। इसके अलावा, परिसर में चमगादड़, सांप, बिच्छू और उल्लू जैसे जीव-जंतु देखे गए हैं, जिससे सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं。

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कई बार इस मुद्दे को उठाया है। 2022 में, जब उन्हें JPNIC परिसर में प्रवेश से रोका गया, तो उन्होंने दीवार फांदकर जय प्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया था。 2023 में भी, प्रशासन ने उन्हें परिसर में जाने की अनुमति नहीं दी, जिसके बाद उन्होंने अपने आवास के बाहर ही प्रतिमा स्थापित कर माल्यार्पण किया। उन्होंने वर्तमान सरकार पर विकास कार्यों को रोकने और राजनीतिक द्वेष के कारण परियोजना को ठप करने का आरोप लगाया है。

इस परियोजना की वर्तमान स्थिति न केवल सरकारी धन का दुरुपयोग दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि राजनीतिक विरोधाभासों के कारण विकास कार्य कैसे प्रभावित होते हैं। यदि समय पर जांच पूरी होकर दोषियों को सजा मिलती और परियोजना का कार्य पुनः प्रारंभ होता, तो यह केंद्र लखनऊ के सांस्कृतिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था। यह स्थिति इस बात का प्रतीक है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते विकास कार्यों में अवरोध उत्पन्न होते हैं, जिससे देश की प्रगति बाधित होती है।

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