अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो ने हाल ही में यूरोप की रक्षा क्षमताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) के भीतर यूरोपीय देशों की रक्षा तैयारियों में कमी को उजागर किया, जो संगठन की समग्र क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना था। वर्तमान में नाटो के 30 सदस्य देश हैं, जो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है, तो उसे सभी सदस्यों पर हमला माना जाएगा। हालांकि, हाल के वर्षों में नाटो के भीतर सुरक्षा सहयोग को लेकर मतभेद उभर रहे हैं।
रुबियो ने यूरोप की रक्षा क्षमताओं में गिरावट को लेकर चेतावनी दी है, विशेष रूप से रूस के बढ़ते खतरे के संदर्भ में। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करने और नाटो के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। रूस के साथ बढ़ते तनाव के बीच, यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था पर बढ़ता संकट वैश्विक स्थिरता के लिए चुनौती बन सकता है।
नाटो का विस्तार, विशेष रूप से पूर्वी यूरोप में, रूस के साथ तनाव का एक प्रमुख कारण रहा है। 1999 के बाद से नाटो ने कई पूर्व वारसॉ पैक्ट देशों को सदस्यता प्रदान की, जिससे रूस ने अपनी सुरक्षा चिंताओं को बार-बार व्यक्त किया। यह विस्तार रणनीतिक रूप से अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन इससे रूस-नाटो संबंधों में बढ़ती खाई को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कुछ यूरोपीय नेताओं ने एक संयुक्त यूरोपीय सेना की आवश्यकता पर बल दिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए लंबे समय से एक स्वतंत्र यूरोपीय सेना की वकालत की है। यह पहल यूरोप की सामूहिक सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से की जा रही है, लेकिन सभी नाटो सदस्य इस विचार से सहमत नहीं हैं।
रुबियो की टिप्पणियाँ यूरोप की रक्षा क्षमताओं में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। नाटो की प्रभावशीलता उसके सभी सदस्य देशों की सामूहिक प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। यदि यूरोपीय देश अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में विफल रहते हैं, तो यह नाटो की समग्र सुरक्षा संरचना को कमजोर कर सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि यूरोपीय देश अपनी रक्षा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करें और संगठन के भीतर अपनी भूमिका को सुदृढ़ करें।