रामायण से विमुख, रावण से प्रेरित: नैतिक पतन की ओर बढ़ता समाज
रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को दिशा देने वाला मार्गदर्शक है। सत्य, धर्म और मर्यादा का संदेश देने वाली इस महागाथा ने सदियों से समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाया है। लेकिन आधुनिक समय में समाज राम के आदर्शों से विमुख होकर रावण, कंस और शकुनि जैसे नकारात्मक पात्रों से प्रेरणा लेने लगा है।
नैतिकता का पतन: एक चिंताजनक स्थिति
समाज में नैतिकता और आदर्शों की जगह भौतिकवाद, छल और स्वार्थ ने ले ली है। रामायण पढ़ने के बावजूद हम राम नहीं बन पा रहे, लेकिन एक फिल्म देखकर रावण बनने को तत्पर हो जाते हैं। यह केवल एक विचार नहीं, बल्कि समाज के नैतिक पतन का स्पष्ट संकेत है।
शिक्षा प्रणाली में नैतिकता का अभाव
आज की शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा का अभाव गंभीर चिंता का विषय है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 80% छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद नैतिकता पर आधारित शिक्षा से अछूते हैं।
- पहले जहां परिवारों में रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाई जाती थीं, अब डिजिटल स्क्रीन और सोशल मीडिया ने इन परंपराओं को पीछे छोड़ दिया है।
संस्कारों का ह्रास
युवा पीढ़ी सही और गलत का भेद करने में असमर्थ होती जा रही है। उनके सामने आदर्श पात्रों का अभाव है, जिससे वे भ्रमित हो जाते हैं। परिवारों में नैतिक मूल्यों का ह्रास समाज के नैतिक पतन का मुख्य कारण बन रहा है।
नकारात्मक किरदारों का बढ़ता प्रभाव
मीडिया और मनोरंजन उद्योग समाज को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं।
- एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% युवा फिल्मों और वेब सीरीज़ से प्रेरित होते हैं, लेकिन वे सकारात्मक के बजाय नकारात्मक किरदारों से अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
- क्राइम-थ्रिलर, गैंगस्टर ड्रामा और एंटी-हीरो आधारित कंटेंट ने नैतिकता को कमजोर कर दिया है।
- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के बाद से अपराध दर में 30% की वृद्धि हुई है।
रावण का महिमामंडन
आजकल रावण और कंस जैसे पात्रों को शक्ति और विद्रोह का प्रतीक माना जाने लगा है। कई मंचों पर रावण को बुद्धिमत्ता और साहस का प्रतीक बनाकर महिमामंडित किया जा रहा है। लोग संयम और कर्तव्यनिष्ठा की बजाय सत्ता और छल-कपट को सफलता की कुंजी मानने लगे हैं।
नैतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता
समाज को इस नैतिक पतन से बचाने के लिए नैतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है।
- शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- मीडिया और मनोरंजन उद्योग को सकारात्मक किरदारों को बढ़ावा देना चाहिए।
- परिवारों में सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा को पुनर्जीवित करना होगा।
- सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सद्गुणों का प्रचार होना चाहिए।
निष्कर्ष
रामायण हमें सिखाती है कि सत्य का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन अंततः विजय उसी की होती है जो धर्म और मर्यादा के साथ चलता है। यदि समाज को नैतिक पतन से बचाना है, तो राम के आदर्शों को अपनाना और रावण की प्रवृत्तियों से दूर रहना अनिवार्य है। जब तक नैतिकता, शिक्षा और पारिवारिक संस्कारों को सशक्त नहीं किया जाएगा, समाज राम को भूलकर रावण बनने की ओर अग्रसर होता रहेगा।