भारत का इतिहास केवल शासकों के उत्थान-पतन की कहानी नहीं है। यह एक ऐसी धरोहर है जो संस्कृति, सभ्यता और आस्था की जड़ों को गहराई से प्रभावित करती है। जब यह प्रश्न उठता है कि “भारत के आंगन में बाबर, हुमायूं, अकबर और औरंगजेब का क्या स्थान है?” तो इसका उत्तर इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
भारत का इतिहास और मुगल साम्राज्य
भारत का इतिहास अनेक शासकों और साम्राज्यों के उत्थान और पतन की गाथा है। इन शासकों में मुगल साम्राज्य का विशेष महत्व है। बाबर से लेकर औरंगजेब तक, मुगलों ने भारत पर लगभग तीन शताब्दियों तक शासन किया।
बाबर: मुगल साम्राज्य का आरंभ
सन् 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। उसकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में उल्लेख है कि उसने कई हिंदू धार्मिक स्थलों को नष्ट किया। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया गया। यह तथ्य पुरातात्त्विक खोजों में भी सामने आया है।
बाबर ने चंदेरी विजय के बाद हिंदुओं का सामूहिक संहार किया, जिसे उसने अपनी विजय मानकर गौरवपूर्ण बताया। बाबर का शासनकाल न केवल विजय की कहानियों से भरा था, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता का भी प्रमाण है।
हुमायूं: संघर्ष और सत्ता की लड़ाई
हुमायूं का शासनकाल संघर्ष से भरा रहा। बाबर की मृत्यु के बाद वह सत्ता संभालने में असमर्थ रहा और शेरशाह सूरी से हार गया। हुमायूं को देश छोड़कर जाना पड़ा। लेकिन 15 वर्षों बाद जब उसने दोबारा सत्ता हासिल की, तो उसने भी हिंदू राज्यों पर कठोर नीतियों का पालन किया।
हुमायूं ने सत्ता में लौटने के बाद इस्लामी कट्टरता को बढ़ावा दिया और अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए धार्मिक नीतियों का पालन किया।
अकबर: उदारता या रणनीति?
अकबर को अक्सर उदारवादी शासक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह धारणा पूरी तरह सत्य नहीं है। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, लेकिन यह उसकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था।
1568 में चित्तौड़गढ़ विजय के दौरान लगभग 30,000 निर्दोष हिंदुओं का नरसंहार हुआ। इस घटना ने स्पष्ट किया कि उसकी नीतियों में भी धार्मिक असहिष्णुता का स्थान था। उसने कई मंदिरों को नष्ट किया और कुछ को दरबारी उपयोग के लिए जब्त कर लिया।
जहांगीर और शाहजहां: सांस्कृतिक निर्माण और धार्मिक विडंबना
जहांगीर ने अकबर की नीतियों का कुछ हद तक पालन किया, लेकिन उसकी धार्मिक नीतियां कठोर थीं। शाहजहां के समय में ताजमहल और अन्य वास्तुशिल्प कृतियों का निर्माण हुआ, लेकिन इसी दौर में काशी विश्वनाथ और मथुरा के केशवदेव मंदिर को नष्ट किया गया।
औरंगजेब: धार्मिक कट्टरता का चरम
औरंगजेब का शासनकाल धार्मिक कट्टरता और क्रूरता का चरम माना जाता है। 1679 में उसने जज़िया कर को पुनः लागू किया और कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा के केशवदेव मंदिर और सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया गया।
मासीर-ए-आलमगीरी जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज है कि औरंगजेब ने सैकड़ों मंदिरों को नष्ट किया और हिंदू धर्म के अनुयायियों पर दबाव डालकर धर्म परिवर्तन का प्रयास किया। गुरु तेग बहादुर की हत्या भी इसी धार्मिक कट्टरता का परिणाम थी।
ऐतिहासिक विश्लेषण: एक प्रश्नचिन्ह
इतिहास के इन तथ्यों को देखकर यह प्रश्न उठता है कि क्या मुगल शासकों की विरासत को भारत के सांस्कृतिक आंगन में स्थान मिलना चाहिए? यह न केवल एक ऐतिहासिक बहस का विषय है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान से भी जुड़ा हुआ प्रश्न है।
भारत का इतिहास केवल विजय और पराजय की कथा नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, आस्था और सांस्कृतिक अस्तित्व का प्रतीक है। इतिहास के तथ्यों का निष्पक्ष अध्ययन आवश्यक है ताकि सही और गलत का अंतर स्पष्ट हो सके।