हाल ही में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की भारत यात्रा ने वैश्विक कूटनीति में एक नया आयाम जोड़ा है। उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान इस वर्ष के अंत तक भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने की प्रतिबद्धता जताई गई। यह पहल ऐसे समय में आई है जब वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है, खासकर अमेरिका द्वारा संभावित टैरिफ बढ़ोतरी और चीन के साथ यूरोप के जटिल व्यापारिक संबंधों के कारण। इन परिस्थितियों में भारत, यूरोपीय संघ के लिए न केवल एक आकर्षक बाजार, बल्कि एक विश्वसनीय आर्थिक और रणनीतिक साझेदार के रूप में उभर रहा है।
2023-24 में भारत और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार 130 अरब डॉलर को पार कर गया, जो पिछले दशक में लगभग 90% की वृद्धि को दर्शाता है। यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत में 6,000 से अधिक यूरोपीय कंपनियां सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक संबंध केवल आर्थिक हितों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यापक रणनीतिक सहयोग का हिस्सा भी हैं।
हालांकि, भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को लेकर कई जटिलताएँ भी सामने आ रही हैं। यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत लक्जरी कारों, शराब और अन्य आयातित उत्पादों पर लगाए गए ऊँचे शुल्कों को कम करे, जबकि भारत अपने फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और अन्य उत्पादों के लिए यूरोपीय बाजार में आसान पहुंच की मांग कर रहा है। इसके अलावा, पर्यावरणीय मानकों को लेकर भी मतभेद बने हुए हैं। यूरोपीय संघ 2026 से उच्च-कार्बन उत्पादों जैसे स्टील, एल्युमिनियम और सीमेंट पर अतिरिक्त कर लगाने की योजना बना रहा है, जिसका भारत विरोध कर रहा है क्योंकि इससे उसके उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
भारत की बढ़ती जनसंख्या और तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था ने उसे वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। यूरोपीय संघ अब यह समझने लगा है कि भारत के साथ मजबूत आर्थिक और रणनीतिक संबंध स्थापित करना उसके दीर्घकालिक हितों के लिए अनिवार्य है। अमेरिका की व्यापारिक नीतियों और वैश्विक शक्ति संतुलन में हो रहे बदलावों ने यूरोप को यह अहसास कराया है कि भारत के साथ सहयोग बढ़ाने से न केवल आर्थिक अवसर मिलेंगे, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी लाभ होगा।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता सिर्फ आर्थिक साझेदारी को मजबूत करने का साधन नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करने वाला एक अहम कूटनीतिक कदम भी होगा। दोनों पक्षों के लिए यह आवश्यक है कि वे व्यापारिक और नीतिगत मतभेदों को सुलझाते हुए एक संतुलित और लाभकारी समझौते की दिशा में आगे बढ़ें। भारत की बढ़ती वैश्विक स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में यूरोपीय संघ सहित अन्य प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में अग्रसर होंगी।