परिचय
21 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति, स्थिरता और विश्वास निर्माण को मजबूत करना था। लेकिन कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने इस समझौते का उल्लंघन किया और करगिल युद्ध (मई-जुलाई 1999) छेड़ दिया।
करगिल युद्ध: पाकिस्तान का छल
जब भारत शांति वार्ता में लगा हुआ था, तब पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में भारतीय सीमा में घुसपैठ कर ली। पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने ऊँचाई वाले क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे भारतीय सेना को भारी नुकसान हुआ। इस युद्ध में भारत के 527 से अधिक सैनिक शहीद हुए और 1,300 से अधिक घायल हुए। शुरुआत में, पाकिस्तान ने इस घुसपैठ से इनकार किया। हालांकि, बाद में मिले सबूतों से साफ हो गया कि यह पाकिस्तानी सेना की सोची-समझी साजिश थी।
लाहौर घोषणा और पाकिस्तान की वादा खिलाफी
नवाज शरीफ ने लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने इसे पूरी तरह अनदेखा कर दिया। तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने बिना सरकार की सहमति के यह युद्ध छेड़ दिया। नतीजतन, पाकिस्तान की लोकतांत्रिक साख पर भी गंभीर प्रश्न उठे।
भारत-पाकिस्तान युद्धों का इतिहास
- 1947-48: पाकिस्तान ने कबायलियों और अपनी सेना को जम्मू-कश्मीर पर हमला करने के लिए भेजा।
- 1965: ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ कर युद्ध छेड़ा।
- 1971: पाकिस्तान के नरसंहार के कारण भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिससे बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- 1999: करगिल युद्ध में पाकिस्तान ने शांति वार्ता के बावजूद धोखा दिया।
पाकिस्तान और आतंकवाद
पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद को समर्थन देता आ रहा है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तान की आईएसआई से प्रत्यक्ष सहायता मिलती है। ये संगठन 26/11 मुंबई हमला (2008), उरी हमला (2016), और पुलवामा हमला (2019) जैसी घटनाओं में शामिल रहे हैं।
भारत की शांति नीति बनाम पाकिस्तान की विश्वासघात नीति
भारत ने हमेशा शांति समझौतों का पालन किया है, जबकि पाकिस्तान ने हर बार उनका उल्लंघन किया है। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई लगातार आतंकवाद और घुसपैठ को बढ़ावा देते हैं। इसके कारण क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा बना रहता है। यह आचरण अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय है।
निष्कर्ष
करगिल युद्ध ने यह सिद्ध कर दिया कि पाकिस्तान की नीतियां विश्वासघात पर आधारित हैं। भारत को हमेशा सतर्क रहना चाहिए और पाकिस्तान की कूटनीतिक धोखाधड़ी के खिलाफ सख्त रुख अपनाना चाहिए। इसके अलावा, पाकिस्तान की इस विश्वासघाती नीति की कड़ी निंदा की जानी चाहिए। यह शांति और स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है।