डोनाल्ड ट्रंप, जॉर्जिया मेलोनी और नरेंद्र मोदी, ये तीन नेता अपने-अपने देशों में राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी और मजबूत नेतृत्व के प्रतीक माने जाते हैं। हाल के वर्षों में इनकी विचारधारा और कार्यशैली में समानता देखने को मिली है, जिससे इनका आपसी समर्थन स्वाभाविक प्रतीत होता है। ये तीनों नेता राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक पहचान, आत्मनिर्भरता और मजबूत नेतृत्व की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ट्रंप का “Make America Great Again”, मेलोनी का “इटली प्रथम” और मोदी का “आत्मनिर्भर भारत”, तीनों की राजनीति देश की पारंपरिक पहचान और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने पर केंद्रित रही है। ट्रंप और मेलोनी ने अवैध आव्रजन पर सख्त रुख अपनाया, वहीं मोदी सरकार ने भी नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के माध्यम से देश की सांस्कृतिक संरचना को सुरक्षित करने का प्रयास किया।
ट्रंप और मोदी की मित्रता 2019 के “Howdy Modi” और 2020 के “नमस्ते ट्रंप” कार्यक्रमों से स्पष्ट हुई थी, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूती मिली। वहीं, ट्रंप और मेलोनी के हालिया मेल-मिलाप ने यह संकेत दिया कि यूरोप और अमेरिका में दक्षिणपंथी विचारधारा को एक नया मंच मिल सकता है। मोदी और मेलोनी के बीच भी भारत-इटली संबंधों को लेकर सकारात्मक वार्ताएं हुई हैं।
आर्थिक दृष्टि से भी इन तीनों नेताओं की नीतियाँ आत्मनिर्भरता और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने पर केंद्रित रही हैं। ट्रंप ने “अमेरिका प्रथम” के तहत अमेरिकी कंपनियों और उत्पादन को प्राथमिकता दी, मोदी ने “मेक इन इंडिया” और “वोकल फॉर लोकल” जैसे अभियानों को बढ़ावा दिया, और मेलोनी भी इटली के पारंपरिक उद्योगों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान दे रही हैं।
वैश्विक सुरक्षा के मामले में इन तीनों नेताओं का चीन पर समान रुख रहा है। ट्रंप ने चीन की व्यापारिक नीतियों पर कड़ा हमला बोला था, मोदी सरकार ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कई नीतिगत फैसले लिए, और मेलोनी भी यूरोप में चीन के प्रभाव को सीमित करने की समर्थक रही हैं।
इनकी राजनीति का प्रभाव केवल घरेलू सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। अगर ट्रंप फिर से अमेरिका में सत्ता में आते हैं, मेलोनी यूरोप में दक्षिणपंथी धारा को मजबूत करती हैं और मोदी भारत में अपनी लोकप्रियता बनाए रखते हैं, तो यह वैश्विक राजनीति के लिए एक नया समीकरण बन सकता है। हालांकि, इनके नेतृत्व को लेकर कई चुनौतियाँ भी हैं। ट्रंप पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के आरोप लगते रहे हैं, मेलोनी की नीति यूरोपीय संघ की एकता के लिए चुनौती बन सकती है, और मोदी सरकार की नीतियों को भी कुछ लोग सत्ता के केंद्रीकरण के रूप में देखते हैं।
इस त्रिमूर्ति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या ये अपने देशों के भीतर लोकतंत्र को मजबूत कर पाते हैं या फिर सत्ता के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति इनमें हावी होती है। आने वाले वर्षों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इन तीनों नेताओं का गठबंधन वैश्विक राजनीति को नई दिशा देता है या फिर लोकतांत्रिक संतुलन के लिए चुनौती बनता है।