भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता: राजनीति और सहभागिता

भारत: विविधता में एकता
भारत अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सहित कई धर्मों के लोग सह-अस्तित्व में रहते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121.09 करोड़ थी, जिसमें:

  • हिंदू: 79.8% (96.63 करोड़)
  • मुस्लिम: 14.2% (17.22 करोड़)
  • ईसाई: 2.3% (2.78 करोड़)
  • सिख: 1.7% (2.08 करोड़)
  • बौद्ध: 0.7% (0.84 करोड़)
  • जैन: 0.4% (0.45 करोड़)

इतनी विशाल विविधता के बावजूद, हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि कुछ राजनीतिक नेता विशेष धार्मिक आयोजनों में ही सक्रिय रूप से शामिल होते हैं, जबकि अन्य धर्मों के आयोजनों में उनकी उपस्थिति नगण्य रहती है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से चुनावी समय में अधिक स्पष्ट होती है, जहाँ नेताओं का एक विशेष समुदाय के धार्मिक आयोजनों में सहभागिता करना उनके वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा जाता है।


राजनीति और धार्मिक सहभागिता

भारत में चुनावी राजनीति अक्सर जाति, धर्म और समुदाय आधारित होती है। राजनीतिक नेताओं का विशेष धार्मिक आयोजनों में शामिल होना उस समुदाय के मतदाताओं को आकर्षित करने और उनके समर्थन को सुनिश्चित करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
हालाँकि, ऐसी रणनीति समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती है। इससे अन्य समुदायों में उपेक्षा की भावना पैदा हो सकती है, जिससे सामाजिक समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।


धार्मिक ध्रुवीकरण और सामाजिक प्रभाव

अमेरिका स्थित संगठन “प्यू रिसर्च सेंटर” की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में चुनौतियों का सामना कर रहा है और यहाँ धार्मिक भेदभाव की घटनाएँ बढ़ी हैं।
नेताओं का केवल एक विशेष धर्म के आयोजनों में सक्रिय रहना समाज में विभाजन की भावना को जन्म दे सकता है। इससे सामाजिक तनाव और सांप्रदायिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है।


विविधता में एकता को सशक्त बनाना

भारत की वास्तविक शक्ति उसकी विविधता में निहित है। राजनीतिक नेताओं का सभी धार्मिक आयोजनों में समान रूप से सहभागिता करना न केवल सामाजिक समरसता को बढ़ावा देगा, बल्कि यह देश की एकता को भी सुदृढ़ करेगा।
नेताओं को अपने कार्यों में समावेशिता और निष्पक्षता का परिचय देना चाहिए, जिससे सभी समुदायों के बीच विश्वास और सहयोग की भावना विकसित हो सके।


निष्कर्ष

धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान और सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण ही भारत की एकता को बनाए रखने का मार्ग है।
नेताओं को चाहिए कि वे किसी एक धर्म विशेष तक सीमित न रहकर सभी धर्मों के आयोजनों में भाग लें, जिससे वे समावेशी और निष्पक्ष नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत कर सकें।

 

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